भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर: मेक इन इंडिया के प्रभाव से वैश्विक सफलता तक का सफर
भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर पिछले कुछ दशकों में अभूतपूर्व विकास के साथ एक नई दिशा में बढ़ा है। जहां एक समय विदेशी कारों का क्रेज था, वहीं अब भारतीय लोग गर्व से अपनी स्वदेशी कारों का चुनाव करते हैं। इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों ने भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना दिया है।
मेक इन इंडिया: एक क्रांतिकारी कदम
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम भारत के उत्पादन क्षेत्र को एक नई दिशा देने के लिए था। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी निवेश को आकर्षित करना, देश में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना और भारत को दुनिया के प्रमुख विनिर्माण केंद्रों में से एक बनाना था। विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के क्षेत्र में इस योजना ने महत्वपूर्ण प्रभाव डाला, जिससे भारत ने पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए स्वच्छ और हरित तकनीक में निवेश किया।
नीतिगत सुधार और राजकोषीय प्रोत्साहन
सरकार के अनुसार, पिछले दशक में नीतिगत सुधार, बुनियादी ढांचे में सुधार और राजकोषीय प्रोत्साहनों ने भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग की वृद्धि को संभव बनाया। उदाहरण के लिए, सरकार ने विभिन्न योजनाओं के तहत वित्तीय सहायता, टैक्स में छूट, और किफायती बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया, जिसने भारतीय उद्योगों को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखा। इन बदलावों के कारण, भारतीय ऑटोमोबाइल उत्पादन अब वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हो चुका है।
वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका
भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर आज दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमोबाइल निर्माता देशों में से एक बन चुका है। 1991 में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) के लिए द्वार खोलने के बाद, विदेशी कंपनियों ने भारत में अपने उत्पादन केंद्र स्थापित किए हैं। इन कंपनियों के लिए भारत में उत्पादन करना अब फायदे का सौदा है, क्योंकि यहां सस्ती और सक्षम श्रम शक्ति, विशेषज्ञता और आवश्यक पुर्जों की उपलब्धता है।
वास्तव में, 1991-92 में 2 मिलियन वाहनों का उत्पादन करने वाला भारत, आज 2023-24 में करीब 28 मिलियन वाहनों का उत्पादन कर रहा है। इसके अलावा, भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग लगभग 240 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कारोबार कर रहा है, और उसका निर्यात 35 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। इससे लगभग 30 मिलियन लोगों को रोजगार मिला है।
स्वदेशी पुर्जों का निर्माण: आत्मनिर्भरता की ओर कदम
आज, भारत सिर्फ वाहनों का उत्पादन ही नहीं कर रहा, बल्कि इसके लिए आवश्यक पुर्जों का भी स्वदेशी निर्माण कर रहा है। भारतीय उद्योग ने इंजन, ट्रांसमिशन सिस्टम, ब्रेक सिस्टम, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों, बॉडी और चेसिस सहित कई महत्वपूर्ण हिस्सों का निर्माण शुरू कर दिया है। यह आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को हासिल करने में भारत की बड़ी उपलब्धि है।
इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि अब भारत के ऑटोमोबाइल निर्माता अपनी लागत को कम कर सकते हैं, साथ ही यह उत्पादन को और अधिक कुशल बनाता है। इस क्षेत्र में भारत की सफलता ने न केवल घरेलू बाजार को प्रभावित किया है, बल्कि इसे वैश्विक बाजार में भी महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
भारत: विश्व स्तर पर अग्रणी निर्माता
आज, भारत तिपहिया वाहनों का सबसे बड़ा निर्माता है और दुनिया के दोपहिया वाहनों के शीर्ष दो निर्माताओं में शामिल है। इसके अलावा, भारत यात्री वाहनों के शीर्ष चार और वाणिज्यिक वाहनों के शीर्ष पांच निर्माताओं में भी शामिल है। भारत की इस सफलता को देखते हुए कई विदेशी कंपनियां अब अपने विनिर्माण केंद्र भारत में स्थापित करने की योजना बना रही हैं।
निष्कर्ष
भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर एक नई दिशा में बढ़ रहा है। ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के कारण देश ने न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण पहचान बनाई है। अब भारत न केवल वाहनों का उत्पादन कर रहा है, बल्कि अपने खुद के पुर्जों का निर्माण भी करता है, जिससे आत्मनिर्भरता की ओर महत्वपूर्ण कदम बढ़ाए गए हैं। इस बदलाव ने भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बना दिया है, और भविष्य में इससे और भी विकास की संभावनाएं हैं।